Anorexia, आरुचि का उपचार

पाचन संस्थान के रोग (Anorexia)


रोग परिचय, कारण और लक्षण

अरुचि (एनोरेक्सिया) अथवा भोजन न करने की इच्छा न होना (आरोचक)- यह अन्य बहुत से रोगों में प्रकट होने वाला लक्षण है। अतः स्वतन्त्र रूप से इस रोग (अरुचि) की अपनी अहमियत कम होती है। अस्तु ! यह रोग-पेट के, आंतों के, यकृत/ जिगर के तथा शरीर के अन्य भाग के कारण से हो सकते हैं। 'अरुचि' से पीड़ित रोगी
को-भूख नहीं लगती, वह पूरे-पूरे दिन बिना भोजन किये हुए ही रह लेता है। (स्मरण रहे कि-सामान्यतः मस्तिष्क में 'हाइपोथेलेमिक केन्द्र' भूख का नियन्त्रण करता है।)

इस रोग के प्रमुख कारण नीचे लिखे हैं-

ज्वर, मलेरिया ज्वर, संक्रामक रोग, यकृत (Liver) के रोग यथा—पीलिया, हेपेटाइटिस, कैंसर, आमाशय के रोग तथा आंत के रोग, अल्सर, कैं सर एवं अन्य रोग, क्षय रोग
(टयूबर कुलोसिस) व छाती अथवा फेफड़ों के अन्य रोग, कन्जेस्टिव हार्ट फेल्योर, यरीमिया, हाइपरपेराथायरोडिज्म, एडीसन्स रोग तथा भय, शोक, चिन्ता, क्रोध, डिप्रेशन तथा अन्य मानसिक रोग।
उपरोक्त समस्त कारणों में सर्वाधिक पेट, यकृत तथा आँत को खराबी और मानसिक सन्ताप ही मनुष्य को प्रभावित करते हैं। अधिकांश रोगियों में-'कब्ज' चिकनाईयुक्त तथा कम रेशेदार भोजन के खाने से होती है तथा भोजन के समय कम मात्रा में पानी पीने
से एवं शारीरिक श्रम (व्यायाम/कसरत) के अभाव में आँतों की कार्यशीलता धीमी होना भी इस रोग का कारण होता है। शारीरिक रोगों के दृष्टिकोण से यदि देखा जाये तो- यकृत और आमाशय की खराबी के परिणाम स्वरूप ही यह रोग मुख्य रूप से होता है
किन्तु इस रोग में शारीरिक कारणों की अपेक्षा मानसिक कारणों का ही महत्त्व अधिक होता है।
• शरीर में विटामिन 'बी' कम्पलेक्स की कमी से भी भूख की कमी हो जाती है।
• आमांश का अधिक मात्रा में संचय (कब्ज/कॉन्स्टीपेशन) के परिणाम स्वरूप भी
भोजन में अरुचि होती है।
• शरीर में कृमि' (वर्स) की उपस्थिति भी अरुचि का मुख्य कारण माना जाता है।
•अधिक पौष्टिक आहार सेवनोपरान्त सारे दिन कोई कार्य/श्रम न करने से
•मिक्सीडीमा, एडीसन्स आदि ऐसे रोग हैं जिनसे शरीर के अन्तर्गत सम्पादित होने
वाली चयापचयी क्रियायें (मेटाबोल्जिम) बहुत मन्द हो जाती है, जिसके परिणाम र
'अरुचि' हो जाती है
'अरुचि' हो जाती है।
•ज्वर, कब्ज, न्यूमोनिया, चेचक, खसरा एवं अन्य संक्रामकज्वरों को भी अरुचिका
कारण माना जाता है।
•जीर्ण/पुराने (क्रोनिक Cronic) रोगों में भी रोगियों को प्रायः अरुचि हो जाती है।
•कुछ रोगियों को लम्बे समय तक बिस्तर पर रहना होता है यथा-हार्टअटैक, कूल्हे
की हड्डी का हट जाना आदि। इनसे भी प्रायः रोगी को अरुचि हो जाती है।
• अति लोभ-लालच तथा गन्ध का सेवन भी अरुचि में सहायक है। हिस्टीरिया।
योषापस्मार, अनिज आदि मानसिक स्थितियाँ भी भूख बन्द होने या अरुचि होने में सहायक हैं।
• वर्तमान में आपाधापी के युग में तनाव (टेन्सन Tension) से भी भूख लगना प्रायः
कम हो जाता है अथवा भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन खाने में असमर्थ हो जाता है अथवा
भूख लगी हो तथा भोजन भी स्वादिष्ट हो किन्तु फिर भी भोजन अच्छा न लगे तथा भोजन
के ग्रास कौर गले से नीचे न उतरें-यह सब 'अरुचि' के ही अन्तर्गत हैं।
• इस (अरुचि) रोग की 'उग्रावस्था' का सबसे बड़ा कारण स्वयं रोगी ही होता है
जो अपनी लापरवाही/गैर जिम्मेदारी से रोग को उग्रावस्था तक पहुँचाकर मारक' रूप में
तैयार कर लेता है। यदि अरुचि रोग थोड़ा-थोड़ा भी उग्र हो जाये तो-'माइस्थेनिया'
(Myasthenia) के नाम से जाना जाने लगता है।
• इस अरुचि रोग के प्रमुख लक्षण नीचे लिखे हैं-रोगी को भूख नहीं लगती है,
थोड़ा सा खाना खाने के उपरान्त ही पेट भरा-भरा सा लगने लगता है, भूख का स्वाद बदला
हुआ लगता है। रोगी को डकारें आती हैं तथा मुख में (पेट से वापस) पानी आता है। किसी
भी कार्य में मन नहीं लगता है। शरीर में आलस्य और थकावट रहती है। स्वभाव में क्रोध
और चिड़चिड़ापन रहता है। लम्बे समय तक पर्याप्त भोजन न करने से शरीर में कमजोरी तथा
शारीरिक भार (वजन) में कमी आ जाती है। रोगी सदैव मानसिक चिन्ता से ग्रसित रहता है।
रोगी को अल्प परिश्रम करने मात्र से ही अधिक थकावट प्रतीत होने लगती है। भोजन न
करने पर भी रोगी को भूख नहीं लगती है। कब्ज बनी रहती है। रोगी दिन-प्रतिदिन
चला जाता है । रोगी की छाती में शूल (दर्द) तथा पीड़ा होती है। रोगी का चेहरा मलिन और
सूखता
खुश्क हो जाता है। मुख में उष्णता और दुर्गन्ध की उपस्थिति होती है। दीर्घकालिक रोगी में
रक्ताल्पता (रक्त की कमी) हो जाती है।


आयुर्वेदिक चिकित्सा अरुचि (Anorexia)


. अरुचि से पीड़ित रोगी को भोजन में तीखे खाद्यों (यथा-अदरक, अचार, मिर्च, कागजी नींबू, काला नमक, सेंधा नमक, धनिया, पोदीना आदि) के सेवन से लाभ होता तथा भोजन में रुचि बढ़ती है। रोगी को लघु (शीघ्र पाची), रुचिकर और पौष्टिक आहार देना चाहिए।

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रोगी को आधा-पौना घंटा सुबह-शाम टहलना भी हितकर है।

शरीर की मालिश भी उपयोगी है।

रोगी को गरिष्ठ भोजन (देर से पचने वाला) न दें।

रोगी को मूंग, मसूर की दाल का पानी, पनीर, खूब उबला हुआ चावल/भात, ताजा हरी शाक-सब्जियाँ, मछली का शोरबा, ताजा मौसमी फलों का रस सेवन कराना अत्यन्त हितकर है।

सेक्स टेबलेट, निर्माता-हिमालय ड्रग्स। 2 से 4 गोली दिन में 3-4 बार सेवन करायें।

• टेबलेट सर्टिना, निर्माता-चरक फार्मेस्युटिकल्स। 2-2 गोली दिन में 3 बार

सेवन करायें।

ओजस टेबलेट, निर्माता-पूर्ववत्। 1-2 गोली रोगी को भोजन के पूर्व सेवन करायें।

• झण्डू जाइम टेबलेट, निर्माता-झण्डू। 2-2 गोली पानी के साथ भोजनोपरान्त दें।

• गार्लिलपिल, निर्माता--चरक। 2-2 पिल्स भोजन के तुरन्त बाद दिन में 2 बार।

• विगलिव कैपसूल, निर्माता-धूतपापेश्वर । 1-1 कैपसूल दिन में 2 बार गर्म पानी
से दें।
"लिव-52 सीरप, निर्माता-हिमालय ड्रग्स। 15 मिली दिन में 2 बार भोजनोपरान्त
सेवन करायें।
•लिवोनिन सीरप निर्माता-चरक। 2-2 चम्मच दिन में 2-3 बार भोजनोपरान्त
सेवन करायें।


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